आज हम जानेंगे कि मृदा अपरदन क्या होता है? इसके क्या कारण है और इसे ठीक करने के क्या उपाय है?
मृदा अपरदन (mrida apardan) किसे कहते है?
- मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है।
- मृदा के बनने और अपरदन की क्रियाएँ आमतौर पर साथ-साथ चलती है और दोनों मे संतुलन होता है।
- इसके कारण भारत मे मिट्टी की उर्वरक क्षमता दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है।
- यह सभी प्रकार की भू-आकृतियों को प्रभावित करता है।
संबन्धित अवधारणाएँ
- अवनलिकाएँ — बहता जल मृदाओं को काटते हुए गहरी वाहिकाएँ बनाता है, जिन्हे अवनलिकाएँ कहते है।
- उत्खात भूमि – ऐसी भूमि जोतने योग्य नहीं रहती है और इसे उत्खात भूमि (bad land) कहते है।
- चादर अपरदन – कई बार जल विस्तृत क्षेत्र को ढके हुए ढाल के साथ नीचे की ओर बहता है। ऐसी स्थिति मे मृदा घुलकर जल के साथ बह जाती है। इसे चादर अपरदन कहते है।
- पवन अपरदन – पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की प्रक्रिया को पवन अपरदन कहते है।
इसके कारण क्या है?
- वृक्षों की अत्यधिक कटाई
- अति पशुचारण
- सिंचाई की गलत तकनीकों को अपनाना
- गलत तरीको से कृषि करना
- भूमि को बंजर या खाली छोड़कर जल-वायु अपरदन के लिए प्रेरित करना
- निर्माण और खनन आदि प्रक्रियाएँ
इसे रोकने के उपाय
- पट्टी कृषि (strip farming) करके – यह एक ऐसी कृषि होती है जिसमे फसलों के बीच मे घास की पट्टियाँ उगाई जाती है ये पवन द्वारा जनित बल को कमजोर करती है।
- समोच्च जुताई द्वारा– ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओ के समानांतर हल चलाने से ढाल के साथ जल बहाव की गति घटती चली जाती है । इसे समोच्च जुताई (contour ploughing) कहते है।
- सीढ़ीदार खेती करके
- अति पशुचारण को रोकना
- वृक्षारोपण करके
- सिंचाई की सही तकनीकों का इस्तेमाल करके
- खेतो मे बाधिकाएँ बनाकर नालीदार अपरदन को रोकना
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