आज हम जानेंगे कि लोकतांत्रिक पुनरुत्थान, अभ्युत्थान या उफान किसे कहते है? प्रथम, द्वितीय और तृतीयक लोकतांत्रिक अभ्युत्थान क्या है?
लोकतांत्रिक पुनरुत्थान/अभ्युत्थान
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जब किसी देश की लोकतांत्रिक राजनीति मे तेजी से लोगो भागीदारी बढ़ती है तो उसको लोकतांत्रिक पुनरुत्थान या अभ्युत्थान के नाम से जाना जाता है।
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भारत मे स्वतंत्रता के बाद यहाँ की राजनीति के इतिहास के आधार पर तीन लोकतांत्रिक अभ्युत्थान की व्याख्या की गई है।
प्रथम लोकतांत्रिक पुनरुत्थान
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1950 के दशक से 1970 के दशक तक की अवधी को प्रथम लोकतांत्रिक पुनरुत्थान की अवधी कहा जा सकता है, जो केंद्र और राज्यों दोनों में लोकतांत्रिक राजनीति में भारतीय वयस्क मतदाताओं की भागीदारी पर आधारित था ।
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पश्चिमी मिथक को गलत साबित करते हुए कि लोकतंत्र की सफलता के लिए आधुनिकीकरण, शहरीकरण, शिक्षा और मीडिया तक पहुंच की आवश्यकता है, संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांत पर सभी राज्यों में लोकसभा और विधान सभाओं के चुनावों का सफल आयोजन भारत के पहले लोकतांत्रिक पुनरुत्थान/उफान का प्रमाण था।
द्वितीय लोकतांत्रिक पुनरुत्थान
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1980 के दशक के दौरान, समाज के निचले वर्गों जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी को योगेंद्र यादव द्वारा ‘द्वितीय लोकतांत्रिक पुनरुत्थान’ के रूप में व्याख्या की गई है।
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इस भागीदारी ने भारतीय राजनीति को इन वर्गों के लिए अधिक उदार और सुलभ बना दिया है।
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हालांकि इस अभ्युत्थान ने इन वर्गों, खासकर दलितों के जीवन स्तर में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है।
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लेकिन संगठनात्मक और राजनीतिक मंचों में इन वर्गों की भागीदारी ने उन्हें अपने स्वाभिमान को मजबूत करने और देश की लोकतांत्रिक राजनीति में सशक्तिकरण सुनिश्चित करने का अवसर दिया ।
तृतीय लोकतांत्रिक पुनरुत्थान
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1990 के दशक के शुरू से उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के युग का आरंभ हुआ।
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इन घटनाओ ने अर्थव्यवस्था, समाज और राजनीति के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक प्रतिस्पर्धी बाजार समाज का निर्माण किया गया।
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इस प्रकार ‘ तीसरे लोकतांत्रिक पुनरुत्थान ‘ का मार्ग प्रशस्त होता है।
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तीसरा लोकतांत्रिक अभ्युत्थान एक प्रतिस्पर्धी चुनावी बाजार का प्रतिनिधित्व करता है जो सर्वश्रेष्ठ के अस्तित्व के सिद्धांत पर आधारित नहीं है बल्कि योगयतम के अस्तित्व पर आधारित है।
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यह भारत के चुनावी बाजार में तीन बदलावों को रेखांकित करता है:
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1. राज्य से बाजार तक,
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2. सरकार से शासन तक,
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3. राज्य नियंत्रक के रूप से राज्य फैसिलिटेटर के रूप में।
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इसके अलावा, तीसरा लोकतांत्रिक अभ्युत्थान उन युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना चाहता है जो भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और भारत की समकालीन लोकतांत्रिक राजनीति में विकास और शासन दोनों के लिए अपनी बढ़ती चुनावी वरीयता को देखते हुए वास्तविक गेम चेंजर्स के रूप में उभरे हैं ।
भारत क्यो एक बड़े लोकतांत्रिक देश के रूप मे जाना जाता है?
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जनवरी 2019 मे जारी मतदाता सूची के अनुसार भारत मे 89.78 करोड़ लोग मतदान करने के लिए पंजीकृत है।
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तमिलनाडू के मतदाता जो 5.89 करोड़ है तुर्की के 5.93 करोड़ मतदाता के बराबर है।
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उत्तरप्रदेश के 14.43 करोड़ मतदाता ब्राज़ील के 14.73 करोड़ मतदाताओ के बराबर है।