आज हम जानेंगे की चिपको आंदोलन क्या है? इसकी शुरुआत कब, किसने और क्यो की? क्या यह आंदोलन सफल रहा आदि संबन्धित जानकारी?
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चिपको आंदोलन की शुरुआत
- चिपको आंदोलन 1973 मे शुरू हुआ था।
- इस आंदोलन की शुरुआत सुंदर लाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी।
- आंदोलन का नारा- मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।
- इस आंदोलन की शुरुआत उतराखंड के दो तीन गाँवो से हुई थी।
- इसके पीछे की कहानी यह है कि गाँव वालो ने वन विभाग से खेती-बाड़ी के औज़ार बनाने के लिए अंगू नामक पेड़ को काटने की अनुमति माँगी।
- वन विभाग ने पेड़ काटने की अनुमति गाँव वालो को नहीं दी।
- इसके बजाय उसने खेल सामग्री के एक विनिर्माता को ज़मीन का यही टुकड़ा व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए बाँट दिया।
- वन विभाग के इस कदम के कारण गाँव वालो मे नाराजगी पैदा हुई और उन्होने सरकार के इस कदम का विरोध किया।
- यह विरोध जल्दी ही उतराखंड के अन्य इलाको मे भी फैल गया।
- विरोध बढने के कारण इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी और आर्थिक शोषण पर सवाल उठने लगे।
चिपको आंदोलन की मुख्य माँग
- हमारे क्षेत्र के जंगल की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए।
- यहाँ के स्थानीय लोगो का यहाँ के जल, जंगल, जमीन जैसे प्रकृतिक संसाधनों पर कारगर नियंत्रण होना चाहिए।
- सरकार लघु-उद्योगों के लिए कम कीमत पर सामग्री उपलब्ध कराए।
- लोगो की माँग थी कि सरकार यहाँ के पारिस्थितिकी संतुलन को नुकसान पहुंचाए बगैर यहाँ का विकास सुनिश्चित करे।
- आंदोलन ने भूमिहीन वन कर्मचारियो का आर्थिक मुद्दा भी उठाया।
- लोगो ने न्यूनतम मजदूरी की गारंटी की माँग की।
चिपको आंदोलन की विशेषताएँ
- चिपको आंदोलन मे महिलाओ ने सक्रिय भागीदारी की।
- आंदोलन मे महिलाओ ने पुरुषो की शराबखोरी की लत के खिलाफ भी लगातार आवाज उठाई।
- बाद मे इस आंदोलन मे कुछ सामाजिक मसले भी आ जुड़े।
- इस आंदोलन मे लोगो ने एक अनोखे तरीके पेड़ो से चिपककर पेड़ो की कटाई का विरोध किया।
आंदोलन का परिणाम
- आंदोलन के परिणामस्वरूप सरकार ने 15 सालो के लिए हिमालयी क्षेत्र मे पेड़ो की कटाई पर रोक लगा दी।
- ऐसा इसलिए किया गया ताकि इस अवधि मे क्षेत्र के जंगल आदि फिर से ठीक अवस्था मे आ जाए।