आज हम जानेंगे कि आपातकाल क्या होता है? इसके कितने प्रकार है? मुख्य कारण आदि?
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आपातकाल क्या है?
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वह अवधि जिसे मंत्रिमंडल की सलाह पर कुछ संकटकालीन परिस्थितियों के दौरान भारत के राष्ट्रपति द्वारा घोषित किया जाता है।
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इस स्थिति मे देश का शासन केंद्र सरकार के हाथो मे चला जाता है।
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आपातकाल देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता और सुरक्षा आदि के लिए लगाया जाता है।
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भारतीय संविधान के भाग 18 मे अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकाल का प्रावधान किया गया है।
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अनुच्छेद 352 के अनुसार आपातकाल की घोषणा युद्ध, आक्रामकता और सशस्त्र विद्रोह (सशस्त्र विद्रोह शब्द को 1978 मे 44वा संशोधन करके जोड़ा गया इससे पहले यहाँ आंतरिक गड़बड़ी शब्द का इस्तेमाल होता था।)
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अनुच्छेद 356– राज्यो की संवैधानिक विफलता के मामले मे इस अनुच्छेद के अंतर्गत आपातकाल लगाया जाता है।
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अनुच्छेध 360 के अंतर्गत वित्तीय आपातकाल लगाया जाता है।
आपातकाल के प्रकार
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राष्ट्रीय आपातकाल,
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संवैधानिक आपातकाल
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और वित्तीय आपातकाल
राष्ट्रीय आपातकाल के प्रभाव
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पूरा देश केंद्र सरकार के अधीन हो जाता है।
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मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते है।
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अब तक तीन बार इसकी घोषणा हो चुकी है-
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1. अक्तूबर 1962-जनवरी 1968
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2. दिसंबर 1971
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3. जून 1975 से मार्च 1977
आपातकालीन प्रावधान की आलोचना के कारण
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संविधान का संघीय ढाँचा नष्ट हो जाएगा।
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सत्ता का केन्द्रीकरण।
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राष्ट्रपति एक तानशाह बन जाएगा।
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राज्य की वित्तीय स्वायत्ता शून्य हो जाएगी।
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मौलिक अधिकार निरर्थक हो जाएंगे ।
25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 मे आपातकाल के कारण
1. आर्थिक कारण
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1971 मे भारत-पाक युद्ध, पूर्वी पाकिस्तान से 8 मिलियन शरणार्थियों का आना।
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अमेरिका की तरफ से सहायता का बंद होना।
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सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर रोक।
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अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार मे तेल की कीमतों मे वृद्धि।
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मानसून की विफलता।
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औद्योगिक विकास की धीमी गति।
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बेरोजगारी का बढ़ना आदि।
2. जनता मे असंतोष के कारण
A. गुजरात आंदोलन
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जनवरी 1974 गुजरात के छात्रो ने महंगाई के खिलाफ आंदोलन किया।
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गैर-कांग्रेसी विपक्षी दल भी इस आंदोलन मे शामिल हो गए।
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राज्य विधानसभा चुनाव फिर से कराने की मांग।
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कांग्रेस (O) के नेता मोरारजी देसाई द्वारा चुनावो के लिए अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की घोषणा।
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जून 1975, गुजरात मे कांग्रेस की चुनाव मे हार।
B. बिहार आंदोलन
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मार्च, 1974 मे बिहार मे भी छात्रो ने महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया।
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बिहार सरकार के खिलाफ बंद, घेराव और हडतालो का सहारा लिया गया।
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बिहार की सरकार ने इस्तीफा देने से मना कर दिया।
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जून 1975 मे जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व मे ‘शांतिपूर्ण सम्पूर्ण क्रांति’ का आवाहन किया गया।
C. नक्सलियों का आंदोलन
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पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी थाना क्षेत्र मे किसानो का विद्रोह।
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1967 मे CPI (M) के स्थानीय कार्यकर्ताओ ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया।
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यह आंदोलन नक्सलबाड़ी थाना क्षेत्र से शुरू होकर भारत के अनेक राज्यो मे फैला।
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इस आंदोलन मे धनी भू-स्वामियों से बलपूर्वक जमीन छीनकर गरीब और भूमिहीन लोगों को दी।
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मार्क्सवादी संसदीय राजनीति मे विश्वास नही रखते है।
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1969 मे नक्सलवादी CPI (M) से अलग हो गए और इन्होने CPI (मार्क्सवादी-लेनिनवाद) नाम से एक नयी पार्टी बनाई।
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चारु-मजूमदार ने CPI (मार्क्सवादी-लेनिनवाद) पार्टी की स्थापना की थी।
D. सरकारी कर्मचारियो का असंतोष
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वेतन ना मिलने के कारण सरकारी कर्मचारियों मे असंतोष था।
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इसी कारण मई 1994 मे जॉर्ज फर्नांडिस (अखिल भारतीय रेलवे महासंघ के अध्यक्ष) के नेतृत्व मे रेलवे कर्मचारियों ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आवाहन किया।
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इन्होने बोनस और बेहतर सेवा शर्तो की मांग की लेकिन सरकार ने इनकी मांगो का विरोध किया और हड़ताल को अवैध घोषित कर दिया।
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बिना किसी समझौते के 20 दिनो के बाद हड़ताल समाप्त हो गयी।
3. न्यायपालिका के साथ टकराव
केशवानन्द भारती केस-1973 मे अदालत ने इस केस मे निर्णय दिया जिसके अनुसार संविधान की कुछ बुनियादी विशेषताएँ है और इनमे संसद संशोधन नही कर सकती।
न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संघर्ष
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1973 मे भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद खाली हुआ।
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सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को ही मुख्य न्यायाधीश बनाने की प्रथा है।
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लेकिन सरकार ने तीन वरिष्ठ न्यायाधीशो को छोड़कर ए. एन. रे. को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया।
4. 5वां आम चुनाव और इन्दिरा गांधी
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1971 के आम चुनावो मे इन्दिरा गांधी की जीत हुई।
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समाजवादी नेता राजनारायण ने इस जीत को इलाहबाद के उच्च न्यायालय मे चुनौती दी।
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उन्होने कहा कि इन्दिरा गांधी ने चुनाव प्रचार मे सरकारी कर्मचारियों की सेवाओ का इस्तेमाल किया था।
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इलाहबाद के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इस आरोप को सही ठहराते हुए इन्दिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध करार दिया।
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इसके अनुसार अगर वो अगले 6 महीने मे दोबारा सांसद निर्वाचित नही होती, तो प्रधानमंत्री के पद पर कायम नही रह पाएंगी।
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24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को आंशिक रूप से रहने की अनुमति दी और कहा की वह सांसद बनी रहेगी लेकिन लोकसभा की कार्यवाही मे भाग नही ले सकेगी।