आज हम जानेंगे की स्वतंत्रता के बाद भारत के सामने राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ क्या-क्या थी? उस वक्त किन बातो पर सबकी सहमति थी? भारत-पाकिस्तान विभाजन का क्या कारण था और विभाजन किस प्रकार हुआ उस दौरान क्या समस्याएँ आई और विभाजन का क्या परिणाम हुआ?
भारत की आजादी
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सन 1947 की 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि को हिंदुस्तान आजाद हुआ।
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इस रात संविधान सभा के विशेष सत्र मे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ‘भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेट’ या ‘ट्रस्ट विद डेस्टिनी’ के नाम से भाषण दिया ।
आज़ादी की लड़ाई के वक्त निम्न दो बातों पर सबकी सहमती थी –
1. आज़ादी के बाद देश का शासन लोकतांत्रिक सरकार के जारिए चलाया जाएगा ।
2. सरकार सभी वर्गो के भले के लिए कार्य करेगी ।
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ
1. देश को एकता के सूत्र मे बांधना
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भारत अपने आकार और विविधता मे किसी महादेश के समान था । यहाँ विभिन्न धर्म, जाति, भाषा, संस्कृति के लोग रहते थे, इन सभी को एकजुट करने की चुनौती मुख्य थी।
2. लोकतंत्र कायम करना
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भारत ने संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधित्वमूलक लोकतंत्र को अपनाया । भारतीय संविधान मे मौलिक अधिकारो की गारंटी और हर नागरिक को मतदान का अधिकार दिया गया । लेकिन चुनौती यह भी थी कि लोकतांत्रिक व्यवहार का क्रियान्वयन भी ठीक तरह से हो ।
समानता पर आधारित विकास करना
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ऐसा विकास करने की चुनौती थी जिससे सम्पूर्ण समाज का भला हो ना कि किसी एक तबके का । सामाजिक रूप से वंचित तबकों तथा धार्मिक-सांस्कृतिक अल्पसंख्यक समुदायों को विशेष सुरक्षा दी जाए ।
भारत-पाकिस्तान विभाजन का कारण :-
मुस्लिम लीग ने द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त को अपनाने को कहा जिसके अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि हिन्दू और मुसलमान नाम की दो कौमो का देश है । इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिये एक अलग देश बनाने मांग की ।
विभाजन की प्रक्रिया :–
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फैसला हुआ कि अब तक जिस भू-भाग को इंडिया के नाम से जाना था उसे भारत और पाकिस्तान नाम के दो देशो के बीच बाँट दिया जाएगा ।
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धार्मिक बहुसंख्या को विभाजन का आधार बनाया गया ।
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मुस्लिम बहुसंख्यक इलाके पाकिस्तान और शेष हिस्से भारत कहलाएंगे ।
विभाजन के दौरान की समस्याएँ –
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मुस्लिम बहुल दो इलाके थे एक पूरब मे था तो एक पश्चिम मे और ऐसा कोई तरीका नही था जिससे दोनों इलाको को जोड़ा जाए । इसलिए निर्णय हुआ कि पाकिस्तान मे दो इलाके शामिल होंगे पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान ।
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मुस्लिम बहुल हर इलाका पाकिस्तान मे जाने को राजी नही था । पश्चिमोत्तर प्रांत के ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान जिन्हे सीमांत गाँधी के नाम से जाना जाता था वो द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के एकदम खिलाफ़ थे ।
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ब्रिटिश-इंडिया के मुस्लिम बहुल प्रांत पंजाब और बंगाल मे अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे । ऐसे मे इन प्रांतो का बंटवारा भी धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर हुआ ।
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अल्पसंख्यक वर्ग परेशानी मे थे कि वे कल से भारत के नागरिक होंगे या पाकिस्तान के क्योकि पाकिस्तान मे भी लाखो की संख्या मे हिन्दू और सिख आबादी थी और भारत मे भी मुसलमानों की एक बड़ी आबादी थी ।
विभाजन के परिणाम :-
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विभाजन के कारण एक बड़ी आबादी का स्थानांतरण हुआ, और यह विभाजन आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी से भरा हुआ था ।
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धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को बेरहमी से मारा । इसी कारण हिन्दू बहुल इलाको मे मुसलमानों ने जाना छोड़ दिया और मुस्लिम बहुल इलाको से हिन्दुओ ने ।
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लोग अपना घर-बार छोड़ने पर मजबूर हो गए । अक्सर अस्थायी तौर पर उन्हे शरणार्थी शिविरों मे रहना पड़ा ।
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सीमा के दोनों ओर हज़ारो की तादाद मे औरतों को अगवा किया गया, उनसे जबरन शादी की गयी और अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा ।
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विभाजन के कारण सरकारी सम्पदा का भी बंटवारा किया गया । सरकारी और रेलवे करमचारियो का विभाजन हुआ ।
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विभाजन के कारण तकरीबन पाँच से दस लाख लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी । 80 लाख लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा ।
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विभाजन को दिल के ‘दो टुकड़े हो जाना’ कहा गया । विभाजन मे दो समुदाय जो वर्षो से पड़ोसियो की तरह रहते थे , हिंसक अलगाव का शिकार हुए ।