आज हम जानेंगे के रजवाड़ो का विलय भारतीय संघ मे करने के दौरान क्या समस्याएँ आई और किस प्रकार उनका समाधान किया गया? सरकार और रजवाड़ो का भारतीय संघ मे विलय को लेकर क्या विचार थे और वो किस प्रकार किसका समाधान करना चाहते थे?
रजवाड़ो का विलय – समस्या
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स्वतंत्रता से पहले ही अंग्रेजी शासन ने घोषणा कर दी थी कि भारत की आजादी के साथ ही सभी रजवाड़े (जिनकी संख्या 565 थी) कानूनी तौर पर आजाद हो जाएंगे ।
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अंग्रेजी-राज का नज़रिया था की रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहे तो भारत या पाकिस्तान मे शामिल हो सकते है या अपना स्वतंत्र अस्तित्व बना सकते है ।
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यह फैसला लेने का अधिकार राजाओ को दिया गया ना की उनकी प्रजा को ।
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सबसे पहले त्रावणकोर के राजा ने अपने राज्य को आजाद रखने की घोषणा की । उसके अगले दिन हैदराबाद के निज़ाम ने यहीं घोषणा की ।
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भोपाल के नवाब भी संविधान सभा मे शामिल नही होना चाहते थे।
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समस्या यह थी कि अधिकतर रजवाड़ो मे शासन अलोकतांत्रिक तरीके से चलाया जाता था और राजा लोकतांत्रिक शासन के पक्ष मे नही थे ।
रजवाड़ो के विलय को लेकर सरकार का नजरिया
रजवाड़ो के विलय की इस चर्चा मे उनके (रजवाड़ो के ) शासकों को मनाने-समझाने मे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई । इन्होने अधिकतर रजवाड़ो को भारतीय संघ मे शामिल होने के लिए राजी कर लिया ।
उस वक्त उड़ीसा मे 26 , छत्तीसगढ़ मे 15 , सौराष्ट्र मे 14 बड़े और 119 छोटे रजवाड़े थे ।
देसी रजवाड़ो की इस चर्चा मे निम्न बाते सामने आई –
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अधिकतर रजवाड़े भारतीय संघ मे शामिल होने को तैयार थे ।
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भारत सरकार का रुख लचीला था और कुछ इलाको को स्वायत्ता देने के लिए भी तैयार थे जैसा जम्मू-कश्मीर मे हुआ ।
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विभिन्न इलाको के सीमांकन की समस्या महत्वपूर्ण थी।