आज हम जानेंगे कि सुरक्षा परिषद में सुधार की क्या आवश्यकता है ? इसके विस्तार के लिए क्या प्रयास किये गए ? और प्रयासों में आ रही कठिनाइयाँ क्या है ?
सुरक्षा परिषद में सुधारो की मांग के कारण
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सुरक्षा परिषद् में विस्तार को लेकर की जा रही मुख्य मांग यह है कि इसके स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाए ।
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एशिया, अफ्रीका और दक्षिणी अमरीका के ज्यादा देशो को सुरक्षा परिषद् में सदस्यता देने की बात उठ रही है ।
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इन मांगो का मुख्य कारण यह है कि जब सुरक्षा परिषद् का गठन हुआ था तब वैश्विक राजनीति की स्थिति अलग थी और तब से अब तक वैश्विक राजनीति में बहुत परिवर्तन हो चुका है और इसी कारण सुरक्षा परिषद् में भी परिवर्तन की आवश्यकता है ।
सुरक्षा परिषद् में सुधार के प्रयास
1992 में UNO की आम सभा में एक प्रस्ताव स्वीकृत हुआ और इसमें तीन मुख्य शिकायतों का जिक्र था और इन्हे हम सुधार के कारण भी कह सकते है :-
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सुरक्षा परिषद् अब राजनीतिक वास्तविकताओं की नुमाइंदी नहीं करता ।
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इसके फैसलों पर पश्चिमी मूल्यों और हितो की छाप होती है और इन फैसलों पर चंद देशो का दबदबा होता है ।
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सुरक्षा परिषद् में बराबर का प्रतिनिधित्व नहीं है ।
इन्ही मांगो के मद्देनज़र 1 जनवरी 1997 को UNO के महासचिव कोफ़ी अन्नान ने जांच शुरू करवाई कि सुधार कैसे किये जाए इसके परिणामस्वरूप सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता के लिए निम्नलिखित सुझाव आए :-
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बड़ी आर्थिक ताकत होना चाहिए ।
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बड़ी सैन्य ताकत होना चाहिए ।
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UNO के बजट में ऐसे देशो का ज्यादा योगदान हो ।
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आबादी के लिहाज़ से बड़ा राष्ट्र हो ।
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लोकतंत्र और मानवाधिकारों का सम्मान करता हो।
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यह देश ऐसा हो कि अपने भूगोल, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के लिहाज़ से विश्व की विविधता की नुमाइंदगी करता हो ।
सुरक्षा परिषद में सुधार के क्रियान्वयन में आ रही कठिनाइयाँ
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अर्थव्यवस्था के आधार पर अर्थव्यवस्था कैसी और कितनी बड़ी हो ? यह निश्चित करना मुश्किल है ।
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सैन्य शक्ति का मापदंड करना भी कठिन है ।
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UNO में योगदान निश्चित करना अर्थात क्या यह आर्थिक होना चाहिए या सैनिक ? यह भी मुश्किल है ।
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अधिक जनसंख्या का होना बाधक है या सहायक यह निश्चित करना मुश्किल है।
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लोकतंत्र और मानवाधिकारों के सम्मान के मामले में विश्व में बहुत देश है तो यह निश्चित करना मुश्किल है कि किस देश को सुरक्षा परिषद् की सदस्यता दी जाए ।