आज हम जानेंगे की श्रीलंका कब आजाद हुआ ? इसको पहले किस नाम से जाना जाता था ? यहां में जातीय संघर्ष कैसे हुआ ? इसके जातीय संघर्ष में भारत की भूमिका ? जातीय संघर्ष के बावजूद यहां हुई उन्नति के कारण?
श्रीलंका
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श्रीलंका 1948 में आजाद हुआ था और पहले इसे सिलोन कहा जाता था ।
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आजादी के बाद से ही सफल लोकतंत्र और सामाजिक आर्थिक क्षेत्रों में अपनी अच्छी स्थिति के बावजूद भी श्रीलंका सिंहली (बहुसंख्यक) और तमिल समुदायों में जातीय संघर्ष का शिकार रहा है ।
सिंहली
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सिंहली भारत छोड़कर श्रीलंका आ बसी एक बड़ी तमिल आबादी के खिलाफ है ।
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और इनका मानना था कि श्री लंका में तमिलों के साथ कोई रियायत नहीं बरती जानी चाहिए क्योकि यह सिर्फ सिंहलियो का है ।
तमिल
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तमिलों के प्रति उपेक्षा भरे बर्ताव के कारण 1983 में एक उग्र तमिल संगठन ‘ लिबरेशन टाइगर्स ऑव तमिल इलम ‘ (लिट्टे) बना ।
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इसने यहां (Shri Lanka मे) तमिलों के लिए एक अलग देश की मांग की है ।
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श्रीलंका के उत्तर पूर्वी हिस्से पर लिट्टे का नियंत्रण है ।
श्रीलंका के जातीय संघर्ष में भारत की भूमिका
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क्योकि यहां के जातीय संघर्ष की समस्या भारतवंशी लोगो से जुडी है इस कारण भारत की तमिल जनता ने सरकार पर दबाव डाला की वह श्रीलंकाई तमिलों की रक्षा करे ।
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1987 में भारतीय सरकार इस मामले में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हुई और स्थिति सामान्य करने के लिए भारतीय शांति सेना को वहां भेजा ।
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श्रीलंकाई जनता ने समझा की भारत उनके अंदरूनी मामलो में दखल दे रहा है ।
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1989 में भारत ने अपनी शांति सेना को बिना लक्ष्य हासिल किये वहां से बुला लिया ।
श्रीलंका के गृहयुद्ध की समाप्ति
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मई 2009 में श्रीलंकाई सेना द्वारा लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन के मारे जाने के बाद वहां वर्षो से चले आ रहे गृहयुद्ध की समाप्ति हुई ।
श्रीलंका में जातीय संघर्ष के बावजूद आर्थिक और अन्य क्षेत्रों में उन्नति हुई है
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जनसंख्या की वृद्धि दर पर सफलतापूर्वक नियंत्रण करने वाले विकासशील देशो में प्रथम है ।
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दक्षिण एशिया के देशो में सबसे पहले इसने ही अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया ।
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इसका सकल घरेलू उत्पाद दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है ।
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संघर्ष के बावजूद यह अपने देश मे लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रखने में सफल रहा है ।