आज हम जानेंगे कि ताड़ी विरोधी आंदोलन क्या था? यह आंदोलन कब, कहाँ और क्यो हुआ था? इस आंदोलन की मुख्य मांगे क्या थी और इसका क्या परिणाम हुआ?
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ताड़ी विरोधी आंदोलन का उदय
- आंदोलन की शुरुआत आंध्र प्रदेश के नेल्लौर जिले के दुबरगंटा गाँव मे हुई।
- यह एक शराब विरोधी आंदोलन था जो कि महिलाओं के द्वारा किया गया था।
- 1990 के शुरुआती समय मे महिलाओ के लिए प्रौढ़-साक्षरता कार्यक्रम चलाया गया था।
- महिलाओ ने इस कार्यक्रम मे बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
- कार्यक्रम की कक्षाओ मे महिलाएँ घर के पुरुषो द्वारा देशी शराब, ताड़ी आदि पीने की शिकायते करती थी।
- शराब पीने के कारण हुए नुकसान–
- पुरुष शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो गए थे।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा था।
- शराबखोरी के बढने से कर्ज का बोझ बढ़ा।
- पुरुष अपने काम से गैर-हाज़िर होने लगे।
- इसके कारण घर की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी।
- घर मे तनाव और मारपीट का माहौल बनने लगा।
- इन्ही सब नुकसानों के चलते नेल्लोर मे महिलाएँ ताड़ी की बिक्री के खिलाफ़ आगे आई।
- महिलाओ ने शराब की दुकानों को बंद करवाने के लिए दबाव डाला।
- यह आंदोलन तेजी से फैला और करीब 5000 गाँवो की महिलाओ ने ताड़ी विरोधी आंदोलन मे भाग लेना शुरू कर दिया।
- नेल्लोर जिले मे ताड़ी की नीलामी 17 बार रद्द हुई।
- राज्य सरकार को ताड़ी की बिक्री से काफ़ी राजस्व की प्राप्ति होती थी इसलिए वह इस पर प्रतिबंध नहीं लगा रहे थे।
- महिलाओ की यह लड़ाई शराब माफ़िया और सरकार दोनों के खिलाफ़ थी।
ताड़ी विरोधी आंदोलन का नारा और माँगे
- आंदोलन का नारा- “ताड़ी की बिक्री बंद करो”
- आंदोलन की माँगे और विरोध के कारण –
- ताड़ी की बिक्री को बंद करने की माँग।
- घरेलू हिंसा, महिलाओ पर हो रहे अत्याचार, लैंगिक भेदभाव का विरोध।
- दहेज प्रथा का विरोध और रोकथाम की माँग।
- परिवार के अंदर और बाहर होने वाली यौन हिंसा का विरोध।
- लैंगिक समानता के सिद्धांतो पर आधारित व्यक्तिगत एवं संपत्ति कानूनों की माँग की।
आंदोलन के परिणाम
- कई राज्यो मे शराबबंदी लागू की गई।
- घरेलू हिंसा और महिला अत्याचारों के विरुद्ध कठोर नियम बनाए गए।
- महिलाओं की माँग पर संविधान के 73वे और 74वे संशोधन के अंतर्गत महिलाओ को स्थानीय राजनीतिक निकायो मे आरक्षण दिया गया।
- महिलाओ मे अपने अधिकारो के प्रति जागरूकता आई।
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