आज हम जानेंगे कि अस्सी के दशक मे भारतीय किसान यूनियन ने आंदोलन क्यो किया था? उनके आंदोलन की प्रमुख मांगे क्या थी और आंदोलन का नेतृत्व किसने किसने किया था? और क्या यह आंदोलन सफल हो पाया था आदि संबन्धित जानकारी?
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भारतीय किसान यूनियन आंदोलन का उदय
- 1988 के जनवरी मे उत्तरप्रदेश के मेरठ मे लगभग 20 हज़ार किसान जमा हुए।
- इस किसानों ने मेरठ मे धरना प्रदर्शन किया।
- इनके आंदोलन का नेतृत्व महेंद्र सिंह टिकैत (किसान नेता) द्वारा किया गया था।
- इस आंदोलन मे किसानो ने बिज़ली की दरों मे की गयी बढ़ोतरी का विरोध किया।
- आंदोलन मे किसानो ने जिला कलेक्टर के दफ्तर के बाहर 3 हफ़्तों तक डेरा डाला रखा।
- यह एक बहुत ही अनुशासित धरना था।
- धरने पर बैठे लोगों को आस-पास के गाँवों से निरंतर राशन-पानी मिलता रहा।
- मेरठ का यह धरना ग्रामीण शक्ति का या कहे काश्तकारों की शक्ति का एक बड़ा प्रदर्शन था।
भारतीय किसान यूनियन आंदोलन की माँगे
- गन्ने और गेहूँ के सरकारी मूल्य मे बढ़ोतरी की माँग।
- कृषि उत्पादों के अंतर-राज्यीय आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की माँग।
- बिना किसी बाधा के बिजली आपूर्ति की सुनिश्चितता।
- किसानो के लिए पेंशन का प्रावधान।
- किसानो का बकाया कर्ज माफ।
भारतीय किसान यूनियन आंदोलन की विशेषताएँ
- किसानो ने धरना, रैली, प्रदर्शन, जेल भरो आदि कार्यवाहियों के द्वारा सरकार पर दबाव डाला।
- आंदोलन मे हजारो-हज़ार (कभी-कभी तो एक लाख से भी ज्यादा) किसानो ने भाग लिया।
- भारतीय किसान यूनियन ने लामबंदी के लिए जातिगत जुड़ाव का इस्तेमाल किया।
- अपनी संख्या के बल पर ये संगठन राजनीति मे एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था।
- इस आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता तो यही है कि यह एक शांतिप्रिय आंदोलन था। और इस आंदोलन मे हिंसा का इस्तेमाल नहीं किया गया।
आंदोलन का परिणाम
- किसानो द्वारा किया गया ये आंदोलन सफल हुआ।
- इस संगठन ने राज्यो मे मौजूद अन्य किसान संगठनों को साथ लेकर अपनी कुछ मांगो को मनवाने मे सफलता पाई।
- आंदोलन की सफलता के पीछे इसके सदस्यो की राजनीतिक मोलभाव की क्षमता थी।
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