आज हम जानेंगे कि आपातकाल का घटनाक्रम क्या था? और आपातकाल के क्या परिणाम हुए?
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Click Here-क्या आपातकाल जरूरी था? आपातकाल के सबक
आपातकाल का घटनाक्रम
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25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान मे एक विशाल प्रदर्शन किया गया।
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जयप्रकाश नारायण और विपक्षी दलो ने इन्दिरा गांधी के इस्तीफे के लिए दबाव डाला।
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जेपी ने सेना, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों का आह्वान किया कि वे सरकार के अनैतिक और अवैधानिक आदेशो का पालन न करे।
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25 जून 1975 की रात को प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लगाने की शिफारिश की।
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25 जून की आधी रात को आपातकाल लागू हो गया।
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रात को ही सभी प्रमुख अख़बारो के दफ्तर की बिजली काट दी गई।
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सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया।
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26 जून 1975- 26 जून को प्रातः मंत्रिमंडल को इस बारे मे सूचित किया गया।
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इन्दिरा गांधी ने 26 जून 1975 को ‘ऑल इंडिया रेडियो’ पर राष्ट्र को संबोधित किया।
आपातकाल के परिणाम
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सत्ता का केन्द्रीकरण- सभी शक्तियाँ केंद्र सरकार के हाथो मे चली गयी।
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मौलिक अधिकार निलंबित– सरकार चाहे तो किसी एक अथवा सभी मौलिक अधिकारो पर रोक लगा सकते है या उनमे कटौती कर सकते है।
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प्रेस सेंसरशिप– समाचारपत्रों को कहा गया कि कुछ भी छापने से पहले अनुमति लेना जरूरी है। इसे ही प्रेस सेंसरशिप के नाम से जाना जाता है।
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विपक्षी दलो के नेताओ और कार्यकर्ताओ की बड़ी संख्या मे गिरफ्तारी हुई। कई नेता भूमिगत हो गए।
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विरोध, हड़ताल और आंदोलन पर भी रोक लग गयी।
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सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया।
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निवारक नजरबंदी का इस्तेमाल – इस प्रावधान के अंतर्गत लोगो को इसलिए गिरफ्तार नही किया जाता क्योकि उन्होने कोई अपराध किया है बल्कि इस आशंका से गिरफ्तार किया जाता है कि वे कोई अपराध कर सकते है।
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जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओ को गिरफ्तार किया गया वे बंदी प्रत्यक्षीकरण का सहारा लेकर अपनी गिरफ्तारी को अदालत मे चुनौती भी नही दे सकते थे।
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‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘स्टेट्समैन’ जैसे अख़बारो ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया।
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‘सेमिनार’ और ‘मेनस्ट्रीम’ जैसे पत्रिकाओ ने सेंसरशिप के सामने झुकने की जगह बंद होना मुनासिब समझा।
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पद्मभूषण से सम्मानित कन्नड लेखक शिवराम और पद्मश्री से सम्मानित हिन्दी लेखक फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ ने अपने पुरस्कार लौटा दिये।
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आपातकाल के दौरान ही 42वां संशोधन पारित हुआ।
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इस संशोधन के अंतर्गत विधायिका के कार्यकाल को 5 साल से बढ़ाकर 6 साल कर दिया गया।
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प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावो को कोई भी न्यायालय मे चुनौती नही दे सकता था।
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इसी दौरान प्रधानमंत्री द्वारा 20 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की गयी।
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प्रधानमंत्री के छोटे बेटे संजय गांधी उस वक्त किसी आधिकारिक पद पर नही थे फिर भी उनके द्वारा सरकारी कामकाज मे दखल दिया गया।