आज हम जानेंगे की सोवियत संघ का विघटन कब और कैसे हुआ था ? बर्लिन की दीवार का गिरना? सोवियत संघ के विघटन के क्या कारण थे? सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए? एक ध्रुवीय विश्व क्या है ?
सोवियत संघ का विघटन और दो ध्रुवीयता का अंत
सोवियत संघ का विघटन कब और कैसे हुआ ये जानने से पहले हम ये जानते है की सोवियत संघ कब अस्तित्व मे आया ?
सोवियत संघ – रूस में 1917 में हुई समाजवादी क्रांति ( रुसी क्रांति ) के बाद सोवियत गणराज्य अस्तित्व में आया । यह क्रांति पूंजीवादी व्यवस्था के विरोध में हुई थी ।
बर्लिन की दीवार
1.पूंजीवादी और समाजवादी दुनिया के बीच विभाजन का प्रतीक थी ।
2.यह 1961 में बनी थी ।
3.यह पूर्वी बर्लिन को पश्चिमी बर्लिन से अलग करती थी।
4.150 किलोमीटर से ज्यादा लम्बी । 28 वर्षो तक खड़ी रही ।
5. 9 नवंबर 1989 को जनता ने इसे तोड़ दिया।
6.यह शीतयुद्ध का सबसे बड़ा प्रतिक थी ।
सोवियत संघ का विघटन कब हुआ
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1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में सोवियत संघ के तीन बड़े गणराज्य रूस , यूक्रेन और बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की । इसके बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया
मिखाइल गोर्बाचेव और सोवियत संघ का विघटन
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मिखाइल गोर्बाचेव 1980 के दशक में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने ।
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मिखाइल गोर्बाचेव ने राजनीतिक सुधारो और लोकतांत्रिकरण को अपनाया ।
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उन्होंने पुनर्रचना और खुलेपन के नाम से आर्थिक और राजनीतिक सुधार लागू किये।
सोवियत संघ के विघटन के कारण ?
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संसाधनों का गलत प्रयोग – सोवियत संघ ने अपने अधिकांश संसाधनों का भाग परमाणु हथियारों , सैन्य सामग्री और अपने पिछलग्गू देशो के विकाश पर खर्च किया । इससे उसकी अर्थव्यस्था पर भरी दबाव पड़ा । यह एक बहुत बड़ा कारण माना जाता जिससे सोवियत संघ का विघटन हुआ ।
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पश्चिमी देशो के प्रति गलत प्रचार – सोवियत संघ ने काफी समय तक ये प्रचार किया कि उनके देश की स्थिति पश्चिमी देशो से काफी अच्छी है । लेकिन जब सोवियत संघ के लोगो को पश्चिमी देशो कि स्थिति का पता चला तो उनका भ्रम टूट गया ।
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लोगो की आकांशाओ को पूरा ना करना – गतिरुद्ध अर्थव्यवस्था और उपभोक्ता वस्तुओ की कमी होने के कारण लोग वहां की राजव्यवस्था को संदेह की नजर से देखने लगे क्योकि उनकी आकांशाओ के अनुसार काम नहीं हो रहा था ।
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राजनीतिक रूप से गतिरुद्ध होना – सोवियत संघ पर 70 सालो तक कम्युनिस्ट पार्टी ने शासन किया जो जनता के प्रति जवाबदेह नहीं था । गतिरुद्ध प्रशासन , भ्रष्टाचार , गलतियों को सुधारने की अक्षमता , शासन में खुलेपन की अनिच्छा आदि के परिणामस्वरूप राजनीतिक ढांचा असफल रहा ।
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गोर्बाचेव के सुधारो का विरोध – लोगो का कहना था की गोर्बाचेव के सुधारो की गति बहुत धीमी है और इसी कारण वो इनकी कार्यपद्धति से धीरज खो बैठे थे। कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों का कहना था कि हमारी सत्ता और विशेषाधिकार अब कम हो रहे है और गोर्बाचेव बहुत जल्दबाजी दिखा रहे है।
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राष्ट्रवादी भावनाओ में वृद्धि – सोवियत संघ में इसके आकार, विविधता, और आंतरिक समस्याओ के कारण राष्ट्रीयता की भावना हमेशा विद्यमान रही और साथ ही गोर्बाचेव के सुधारो ने इन भावनाओ में वृद्धि की ।
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लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ना होना – लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के न होने के कारण लोग खुलकर अपनी अपेक्षाओं और शिकायतों को नहीं बता पाते थे और इसलिए वो चुटकुलों और कार्टूनों का सहारा लेते थे ।
सोवियत संघ के विघटन के परिणाम
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शीतयुद्ध का संघर्ष समाप्त हुआ – सोवियत संघ का विघटन होने का बड़ा परिणाम यह हुआ कि वर्षो से चल रहा शीतयुद्ध समाप्त हो गया समाजवादी और पूंजीवादी प्रणाली का अंत हुआ और यह विचारात्मक विवाद समाप्त हो गया ।
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हथियारों की होड़ की समाप्ति – शीतयुद्ध के दौरान दोनों ही गुटों में अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए हथियारों के निर्माण की जबरदस्त होड़ लगी हुई थी । दूसरी महाशक्ति के बिखर जाने के कारण होड़ की यह प्रक्रिया समाप्त हो गयी ।
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लोकतंत्र का विस्तार – सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में लोकतन्त्र की संभावनाए बढ़ने लगी और बहुत से देशो ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपनाया ।
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नए देशो का उदय – सोवियत संघ के विघटन के बाद नए देशो का उदय हुआ जिनकी अपनी एक अलग पहचान पसंद तथा आकांक्षाए थी । इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर कई नए खिलाडी सामने आये जिनकी अपनी अलग पहचान , हित , आर्थिक- राजनीतिक समस्याए अलग – अलग थी।
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शांति की स्थापना – शीतयुद्ध के दौरान दोनों गुटों में एक दूसरे के प्रति शत्रुता की भावना थी जिस कारण विश्व में शांति का आभाव था लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद ये शत्रुता समाप्त हो गया और सभी देशी आपसी सहयोग और शांति को बढ़ावा देने लगे।
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एक धुर्वीय व्यवस्था – शीतयुद्ध के दौरान दो तरह की संभावनाए थी – एकध्रुवीय विश्व या बहुधुर्वीय विश्व लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में या तो अमेरिका के प्रभुत्व के साथ अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप एकधुर्वीय होगा या फिर यूरोपीय संघ , आसियान आदि संघटन अपनी प्रभावशाली मौजूदगी के कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को बहुध्रुवीय बना देंगे ।
एक ध्रुवीय विश्व
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विश्व में एक महाशक्ति का होना ।
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1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद एक ध्रुवीय विश्व की स्थापना हुई।
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उस वक्त विश्व में अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने वाला कोई देश नहीं था ।
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विश्व में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का बोलबाला हो गया क्योकि समाजवादी अर्थव्यवस्था असफल हो गयी ।
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अमेरिका का सैन्य खर्च और सैन्य प्रौद्योगिकी की गुणवत्ता का इतना अच्छा होना की विश्व मई कोई भी देश उसको चुनौती नहीं दे सकता था ।
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अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसे अन्तर्राष्ट्रीय संघटनो पर भी उसका वर्चस्व था।
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उसकी जींस , कोक , पेप्सी आदि विश्व भर की संस्कृतियों पर हावी हो रहे थे ।
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