CHAPTER 4 दक्षिण एशिया और समकालीन विश्व – पाकिस्तान

आज हम जानेंगे की दक्षिण एशिया के देश पाकिस्तान मे किस प्रकार का शासन रहा। यहाँ कब सैनिक शासन और कब लोकतांत्रिक शासन रहा। यहाँ लोकतांत्रिकरण मे कौन-कौन सी कठिनाइयाँ आई आदि ।  

पाकिस्तान

पाकिस्तान में सेना और लोकतंत्र 

  • यहां सबसे पहले जनरल अयूब खान की सरकार बनी लेकिन उनके शासन के खिलाफ जनता का गुस्सा भड़का और उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा ।

  • इसके बाद जनरल याहिया खान ने शासन की बागडोर संभाली और याहिया खान के सैनिक शासन के दौरान इसको बांग्लादेश संकट का सामना करना पड़ा और 1971 में भारत – पाकिस्तान युद्ध भी इन्ही के शासन काल में हुआ ।

  • इनके बाद यहां  जुल्फिकार अली भुट्टो की निर्वाचित सरकार बनी जो 1971-1977 तक कायम रही ।

  • 1977 में जनरल जियाउल हक़ ने इस सरकार को गिरा दिया ।

  • लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के कारण 1988 में वहां बेनज़ीर भुट्टो की लोकतांत्रिक सरकार बनी ।

  • 1999 में फिर सेना ने दखल दिया और जेनरल परवेज़ मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को हटा दिया ।

  • 2001 में परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपना निर्वाचन राष्ट्रपति के रूप में कराया ।

  • 2008 से यहां पर  लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए नेता शासन कर रहे है ।

पाकिस्तान में लोकतंत्र के स्थायी ना रहने के कारण 

  1. यहाँ पर सेना , धर्मगुरु और भू-स्वामी अभिजनो का सामाजिक दबदबा है और इसी कारण वहां कई बार निर्वाचित सरकारों को गिराकर सैनिक शासन कायम हुआ ।

  2. भारत की इसके साथ तनातनी के कारण भी वहां सेना समर्थक समूह ज्यादा मजबूत है ।

  3. सेना समर्थक समूह दलील देते है की यहां के राजनीतिक दलों और लोकतंत्र में खोट है ।

  4. यहां राजनीतिक दलों के स्वार्थ के कारण भी वहां सैनिक शासन को बल मिलता है ।

  5. पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शासन को चलाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन भी प्राप्त नहीं है क्योकि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए सैनिक शासन को बढ़ावा देते है ।

  6. इन देशो को विश्व्यापी इस्लामी आतंकवाद से डर लगता है ।

  7. इन देशो को इस बात का डर भी है कि कही पाकिस्तान के परमाण्विक हथियार कहीं इन आतंकवादी समूहों के हाथ न लग जाये ।

पाकिस्तान में स्थायी लोकतांत्रिक ढांचे का मार्ग प्रशस्त करने में लोकतंत्र समर्थक दो कारक निम्नलिखित है 

  • यहां स्वतंत्र और साहसी प्रैस है 

  • यहां मानवाधिकार आंदोलन भी काफी मजबूत है ।